सीखता रहता हूँ मैं
न जाने
क्या–क्या चीजें
लिखता रहता हूँ मैं
वक़्त की इस महँगाई में
खुद के ही हाथों
खुद को
बिकता रहता हूँ मैं
सब से दूर होकर
पता नहीं
किसके करीब
खुद को
खींचता रहता हूँ मैं
कईं बार तो
इसी वज़ह से
खुद पे ही
झींकता रहता हूँ मैं
लेकिन आखिर में
चाहे हार जाऊँ
या जीत जाऊँ
फिर भी
कुछ न कुछ
सीखता रहता हूँ मैं।
– कुमार बन्टी
Nice lines
वाह बहुत सुंदर
Good
Wow