कर्मयोगी कर्मयोगी अपने कामुक सुखों को कर दमन , अपने गुस्से को दया मेँ कर बदल , अपने लालच को दान की राह कर चलन… UE Vijay Sharma June 30, 2015 2 Comments
_/\__/\__/\__/\_ 🙂
nice poems sir!
nice!!
satyavachan !!
Good
Good