हमर जिनगी ल बनाये खातिर

Cमोर महतारी अऊ मोर ददा
कईसन मेहनत करत हे
हमर जिनगी ल बनाये खातिर
अपन सरीर ल भजथे
भिनसहरे ले उठ के दुनो
पानी कांजी भरत हे
आट परसार अऊ खोर दुवार
महतारी सब ल लिपत हे
गरुआ भैंइसा के चारा दाना
ददा के भरोसे हे
गोरस दुह के वो बिचारा
दू पइसा म बेचत हे
अपन शउख के बलि देके
हमर बर पइसा जोरत हे
हम पढ़ लिख जाबो
कुछ बन जाबो
इहि सोच के मरत हे
बासी पसिया खा के ददा
खार म जांगर पेरत हे
घाम छाह अऊ बादर पानी
सबो म नांगर जोतत हे
उखर करजा ल कइसे उतारबो
इही सोंच के मन झकत हे
उखर उमिद ल नि डोलान
हमू ल मेहनत करना हे
उनखर सेवा करके संगी
हमू ल जीवन तरना हे

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bahut khoob ji
thanks dear
Good
👏👏
Good
👏👏
Nice
बहुत खूब
सही कहा आपने। माता पिता अपने शौक कि बलि देकर बच्चो के भविष्य के लिए पैसे जमा करते है।इस कविता में ग्रामीण जीवन में माता पिता के भावों को अच्छी तरह दर्शाया गया है।। बहुत सुंदर