हाँ,, मैंने लोगो को बदलते देखा हैं!!
हाँ,, मैंने लोगो को खुद में ही बदलते देखा हैं!!
उनके जज्बाती हम को अहम बनते देखा हैं,
कल तक जो सबको साथ लेकर चलने की बात करते थे,,,
आज उनके खिलाफी ख्वाबो को भी अनाथ होते देखा हैं!!
गलत सोचता था कि नाराजगी,,
होती हैं चाँद लफ्जो की दगावाजी,,
उनके प्यारे सावन से मिलकर जाना,,
ये तो सुनामी की हैं कलाबाजी!!
मगर सुनामी से ही सागर को उझड़गते देखा हैं,,
हाँ,, मैंने लोगो को खुद में ही बदलते देखा हैं!!
तुझे भी दगा देना हैं तो शौक से दे दिल,,
हम तो साँसों से भी काम चला लेंगे,,
घुट घुट कर जी जाऊंगा मैं इतना कि,
सावित्री की याद यमराज को दिला देंगे!!
अधूरेपन से खुद को आबाद होते देखा हैं,,
हाँ,, मैंने लोगो को खुद में ही बदलते देखा हैं!!
जो कभी झुकते नहीं थे , प्यार पाने सजदों मे उन्हें झुकते देखा है….
हाँ , मैंने लोगोँ को ख़ुद में बदलते देखा हैँ…..
Bht bdia lines hai , bhai …keep it up
wah ji wah..kya kavita he..
umeedo ko zindagi me jalte dekha he
haan mene logo ko badalte dekha he 🙂
aankon me aks khinchti hui kavita likh di aapne…keep it up
carefully crafted poetry..nice
Thanks everyone
वाह
तुझे भी दगा देना हैं तो शौक से दे दिल,,
हम तो साँसों से भी काम चला लेंगे,,
वाह वाह