हिन्दू मुस्लिम
गायब इस धरा से आज, इंसान क्यूं है।।
कोई हिन्दू, कोई यहां मुसलमान क्यूं है,
एक थाली में खाने वाले,
सुख दुख में साथ निभाने वाले
मिलके त्यौहार मनाने वाले
बने आज शैतान क्यूं हैं,
प्यार भरे दिलो में आज, नफरत के पैगाम क्यूं हैं,
इंसानियत है बची नहीं, कहते
इंसान क्यूं हैं,
गीता और कुरान का आज
अपमान क्यूं है।
बुरा नहीं है हिन्दू
ना ही बुरा मुसलमान है,
राजनीति की गंदी चालो का
विनाशकारी ये तूफान क्यूं है।।
गुरुकुल और मदरसों का भूले
ज्ञान क्यूं है।
ना दीवाली में अली, रमजान से
गायब राम क्यूं हैं।।
आओ भूलें हिन्दू- मुस्लिम
एक दूजे को गले लगाएं,
अपनी एकता से फिर हम
देश भारत महान बनाएं।।
AK
आओ भूलें हिन्दू- मुस्लिम
एक दूजे को गले लगाएं,
अपनी एकता से फिर हम
देश भारत महान बनाएं।।
बहुत खूब, उम्दा विचारों से परिपूर्ण है कविता। सभी मानव एक समान हैं, धर्म व जातिगत भेद समाज को टुकड़ों में बांट देते हसीन। आपने बहुत अच्छा संदेश दिया है।
सुन्दर भाव
धन्यवाद् सर
Good
सुंदर
बहुत ही सुंदर रचना
बहुत ही सुन्दर भाव में सजी है आपकी कविता।
धन्यवाद् सर