हे हिमाद्रि…!!
हे हिमाद्रि !
सदियों से जब मैं नहीं थी
तब भी
तुम यूँ ही अडिग खड़े थे
और आज भी एक इंच
तक ना हटे
भारत का शीर्ष मुकुट बनकर
खड़े हो तुम
गंगा को बहाकर तुम
हम सबका उद्धार करते हो
ना जाने कितनी औषधियों
को उपजाकर तुम
प्रतिवर्ष, प्रतिफल देते हो..
विनाशकारी ओलावृत्तियों
भूकंप और तूफान में भी तुम जरा भी
ना घबराये
बर्फ की चादर ओढ़ कर
तुमने धूप का आलोक
बढ़ाया
पंक्षियों, वृक्षों को अपने
अंक में सुलाया…
अपनी विशालकाय भुजाओं से
सदा तुमने
देश की रक्षा की
ऐसे
सर्वोत्तम, श्रेष्ठतम और निःस्वार्थ सेवा हेतु
हे हिमाद्रि!
मैं तुम्हें पद्मश्री,
पद्मविभूषण और भारत रत्न जैसे पुरस्कारों से
अलंकृत करती हूँ….
भारत के शीर्ष मुकुट स्वरूप हिमालय का सुंदर शब्दों में वर्णन। प्राकृतिक सौंदर्य की सुंदर अभिव्यक्ति। वाह
धन्यवाद आपका
इतना विश्लेषण करने के लिए
सुमित्रानन्दन पंत की हिमाद्रि कविता याद आ गई
यह उससे एकदम अलग और बेहद रोचक, ज्ञानप्रद तथा
प्राकृतिक सौंदर्य से
परिपूर्ण है तथा आपका लेखन किसी मंझे कवि से प्रेरित लगता है…
Speech less
Thanks
हिमालय की बर्फ की चोटी वास्तव में भारत के मुकुट की तरह ही है ।
प्राकृतिक दृश्य का बहुत सुंदर वर्णन।
थैंक्यू…
परन्तु मेरा भाव हिमालय को पुरस्कृत करने तथा उसके सेवा भाव को समझने से है….
ओह, हां ये बात तो है हिमालय देश की रक्षा भी करता है, और नदियों का उद्गम स्थान भी है
बहुत सुंदर भाव और बहुत सुंदर वर्णन।
Very good sis.👏
थैंक्यू दी
मैंने छायावाद के साथ साथ प्रगतिवाद का संगम कर उसकी अहमियत बताई है
बहुत सुंदर प्रस्तुति
बहुत सुंदर रचना
Thanks
बहुत ही सुन्दर
धन्यवाद
Nice poetry
धन्यवाद
Thank u