हैरानी सारी हमें ही होनी थी – बृजमोहन स्वामी की घातक कविता।
हैरानी कुछ यूँ हुई
कि उन्होंने हमें सर खुजाने का
वक़्त भी नही दिया,
जबकि वक़्त उनकी मुट्ठियों में भी नही देखा गया,
लब पर जलती हुई
सारी बात हमने फूँक दी
सिवाय इस सिद्धांत के
कि हमने सपनों की तरह
आदमी देखे,
जबकि ‘सपने’ किसी गर्भाशय में पल रहे होते तो
सारे अल्ट्रासाउंड
घड़ियों की तरह बिकते
और हम वक़्त देखने के लिए सर फोड़ते,
मेहँदी की तरह लांछन लगाते,
सिगरेटों की तरह घर फूंकते,
कुत्तों की तरह बच्चे पालते,
रक्तदान की तरह सुझाव देते,
एक हाथ से ताली बजाते,
औरतें चूड़ियों में छुपाती ‘सुहाग’
आदमी बटुओं में ‘सुहागरात’ छुपाते
और भाट पूरी रात गाते विरुदावलियाँ
सच बताऊँ तो हुआ यूँ था कि
जब हमने आज़ादी के लिए आवाज़ उठाई
तो हमारी अंगुलियां बर्फ की तरह जमी हुई मिली, हमारे गलों में
और हमने तकलीफों को
मुद्दों की तरह उठाया
जबकि ‘रोना’ कॉलेजों के शौचालयों में ही घुटाकर मरा
बाहर हमारे बनाये पोस्टर दम तोड़ते गए।
हमने हयात फूंकने की ज़हमत उठाई
और हड्डियों के बुरादे को
रोटियों में मिलाकर खाया
ताकि एक पीढ़ी बचा सकें।
प्यार के दरवाज़े हमारे लिए सिर्फ
स्कूलों की उबासियों में टिफिन की तरह ही खुलते थे
और चीन के साथ लड़ाई की
खबरों के साथ हमने नींद के केप्सूल खाये,
जबकि बीच रात पालने में खेलते
हमारे छोटे बहन-भाइयो का बदन
दैनिक जागरण और भास्कर नामक अखबारों से पोंछा जाता रहा
उनमे इसी दुनियां के लोगों के मौत की खबरे थी
हमने बिस्तरों की चादरें खींच कर
अपने बदन और चेहरे को ढक लिया था
समझदार प्रेमिकाओं की तरह।
अपनी महानता के नियमों में
मुहल्लेदारी से रिश्तेदारी तक
सान्त्वना देने के बहाने
हमने धरती रोककर
उनका मांस सहलाया,
पावरोटी सी फूली बाजुएँ लिए फिरे,
‘गूँगी चीखों’ को जन्म दिया गया,
आपत्तिजनक टिप्पणियाँ
कागजों में ही सोई रही।
संयोग से
आदमी ही हथियार बनाया गया
नौकरी सिर्फ विज्ञापनों में रही,
क्रन्तिकारी तस्वीरों में चले गए,
अंगूरों पर मौत लिखी गई,
टीवी, रेडियो और मोबाइलों पर जिंदगी
अब जाकर नशा टूटा
आज़ादी का असली मतलब देखा
हमने उन्ही रास्तों में पिरोये दस्तखत
उन्हीं सपनों को जिया
जो हमारे सर काटना चाहते थे
जबकि रेलगाड़ियों के आगे कटकर मरना सस्ता था।
सबकुछ छीनने के बाद भी
उन्हीं सांसों में सहारा लिया गया
जो सिर्फ ‘सांसें’ थी
और गुनाह सिर्फ इतना था
की हमने
घटनाओं का विरोध करना अपने बच्चों को सौंपा !!
बेज़ुबां दास्ताँ ये…
कितने दर्द छुपाएगी?
© copyright Brijmohan Swami
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