ग़ज़ल। सभी को मौत के डर ने ही..

आदाब

सभी को मौत के डर ने ही ज़िंदा रक्खा है
ख़ुदाया फिर भी ये इंसाँ इसी से डरता है

हमारी साँस भी चलती उसी की मर्ज़ी से ही
जहाँ में पत्ता भी उसकी रज़ा से हिलता है

हमेशा आस का दीपक जला के रखना तुम
अँधेरे रास्ते है, तू सफ़र पे निकला है

वो सारे चल पड़े थे, तिश्नगी लिये अपनी
किसी ने कह दिया सहरा में कोई दरिया है

ज़मी पे अजनबी भी अजनबी नहीं होता
बुलंदी पे जो है अक्सर अकेला होता है

ये ज़िंदगी है, इसे नासमझ सा बन के जी
जहाँ में कौन है जो ज़िंदगी को समझा है

रहे न एक भी शिकवा न ‘आरज़ू’ कोई
बता दे ज़िंदगी को ये कि ज़िंदगी क्या है

आरज़ू

Related Articles

दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34

जो तुम चिर प्रतीक्षित  सहचर  मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष  तुम्हे  होगा  निश्चय  ही प्रियकर  बात बताता हूँ। तुमसे  पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…

प्यार अंधा होता है (Love Is Blind) सत्य पर आधारित Full Story

वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥ Anu Mehta’s Dairy About me परिचय (Introduction) नमस्‍कार दोस्‍तो, मेरा नाम अनु मेहता है। मैं…

Responses

+

New Report

Close