ग़ज़ल
ये माना कि ; मैं तेरा ख्बाब नहीं हूँ ।
मगर फिर भी ; इतना ख़राब नहीं हूँ ।।
नशे–सा मैं; चढ़ता–उतरता नहीं ।
सुराही सब्र की हूँ ; शराब नहीं हूँ ।।
मुझे पता है कि ; तू ! भुला न पायेगी ।
सुलगता सवाल हूँ—- जवाब नहीं हूँ ।।
रुबरू रुह होगी मेरी; तुझसे तो ये पढ़ना।
नंगा सच हूँ ——सस्ती किताब नहीं हूँ ।।
मैं खुशबू हूँ–हिना हूँ; याद–ए-सफीना हूँ ।
नहीं हूँ तो रिश्तों का अजाब नहीं हूँ ।।
उम्र “अनुपम” तमाम ख़र्च यूँ ही होनी थी ।
रंज़ औ—ग़म का मगर हिसाब नहीं हूँ ।।
bahut khoob sir ji
बहुत बहुत आभार मित्र
nice
thanks rohanji
beautiful ghazal 🙂
आभार अंजलि जी
सुलगता सवाल हूँ—- जवाब नहीं हूँ ।।… behad khoobsurat line 🙂
आभार अनुप्रिया जी, आपने गज़ल को मर्म से उठाया है ।
वाह
बहुत ही सुन्दर