अच्छा होता
ज़मीं से आसमां का फासला तय होता
मौत के घर का पता सबको पता होता।
न डर होता किसी के खोने का
कोयी छाया ऐसा, नशा होता।
मुस्कराहट होती बस हरेक चेहरे पर
न खौंफ का कोई मंज़र बना होता।
यह विपदा यूं ना मुंह बाये खङी होती
न खैरातों की दमघोंटू सिलसिला शुरू होता।
संतुष्टि की महफ़िल से,यह मन सजा होता
प्रकृति का कहर यूं ना हमपे बरपा होता।
बहुत सुन्दर सारगर्भित रचना प्रस्तुति
आपकी लेखनी काबिले-तारीफ है
अतिसुंदर रचना
धन्यवाद