अपना इख्तियार

जहाँ में बेटियों को आज भी अपना इख्तियार चाहिए,
गर्व से जीने बेटी आज वीरांगना सी ललकार चाहिए।

आँगन में अपने ही क्यों महफूज नही होती है बेटियाँ,
खुद की हिफाजत खुद करने हाथ में तलवार चाहिए।

पाबंदी-ए-परवाज़ के दौर से अपनी आज़ादी के लिए,
अपने खूबसूरत शब्दों में भी कटाक्ष सी कटार चाहिए।

यहाँ हवसखोर की नज़र से अपना मान सम्मान बचाने,
तेरी ममता भरी आँखों में भी शोलों की बौछार चाहिए।

पुरुष प्रधान समाज में स्वभिमान से जीने के लिए भी,
बेटी अपने सीने में गुस्सा और हौसले की धार चाहिए।

✍🏼”पागल”✍🏼

इख्तियार – अधिकार
महफूज – सुरक्षित
हिफाजत – रक्षा
पाबंदी-ए-परवाज़ – उड़ने पर अंकुश

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