अपनी धुन में मगन मजदूर

ठंड में ठिठुरता जाता है,
कोई शिकवा भी ना कर पाता है
उसका ना कोई ठौर-ठिकाना,
दूजे का भवन बनाता है
ठक-ठक, खट-खट की आवाजों में ही,
पूरा दिवस बिताता है
ना निज का कोई ठौर-ठिकाना
मालिक का भवन बनाता है
घर में चूल्हा जले दो वक्त,
वो अपना खून जलाता है
अपना ना कोई ठौर-ठिकाना
दूजे का भवन बनाता है
रात की बात मत पूछो साहिब
आग जलाकर दिन भर की थकन मिटाता है
खुद का ना कोई ठौर-ठिकाना,
दूजे का भवन बनाता है
सुबह-सुबह फिर वही मजूरी,
करने को वह जाता है
खुद की एक छोटी सी झुग्गी,
किसी और का भवन बनाता है
आज चोट लग गई बांह पर,
पर यहां किसी को किसी की परवाह कहां
बस एक चाय, बीड़ी पी कर ही
फिर काम पर लग जाता है
बीड़ी कितना नुकसान करे देह को,
कौन इसे समझाता है
अपनी ही धुन में मगन मजदूर वो,
बस काम ही करता जाता है
_____✍️गीता

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Responses

  1. “घर में चूल्हा जले दो वक्त,
    वो अपना खून जलाता है
    अपना ना कोई ठौर-ठिकाना
    दूजे का भवन बनाता है”
    —- बहुत खूब, मेहनतकश मजदूर की मेहनत का भावपूर्ण चित्रण करने में कवि ने सफलता प्राप्त की है। मजबूत भावपक्ष के साथ सुन्दर कविता का सृजन हुआ है।

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