आखिरी मुलाकात

रात भर होंठों पर मुस्कान,
भोर से ही सीने में गुलों का खिलना था
बात कोई नई न थी,
बस इस शाम अपने हमदर्द से मिलना था ।

ख़ैर,शाम ढ़लने के साथ ही,
सौ रूपये लिए घर से निकल पड़ा
सुनसान सड़कें, आबादी कम
रिक्शा न मिला तो पैदल ही चल पड़ा

ढ़ीले-ढ़ाले कपड़े,चमड़े की चप्पल
पर सरगर्मी साँसे लिए चलता रहा,
कदम दर कदम,मर्तबा तर मर्तबा
उससे मिलने की खुशी में पिघलता रहा

धड़कने तेज़, साँसे उससे भी तेज़
न थका, न रुका बस ठंड से लड़ता गया,
तभी एक रिक्शा मिला और उम्मीद भी
तेज़ी से उसकी घर की तरफ बढ़ता गया

मुस्कान लिए,मैंने रस्ते में सोचा
क्यों न कुछ ले लू उसके ख़ातिर?
हाँ, मिलना कोई नई बात नहीं थी
फिर भी बेतहाशा मोहब्बत हैं उससे आखिर ।

ख़ैर, छोड़ दिया इस ख्याल को मैंने
और कुछ देर बाद,उसकी गली में उतर गया
रात हो चुकी थी,अकेला मैं और मेरा ईश्क
उस चाँदनी की रंगों में निखर गया।

कुछ गाड़ियों का शोर और कीड़े की आवाज़
और उस प्रचंड ठंड में बस उसका इंतजार था
वो जल्दी आ जाती फिर हाल पूछता
और बताता उसे कि मुझे उससे कितना प्यार था।

शशि की चंचल किरणों में उसके चले आने का दृश्य
मानों सुकून की साड़ी पहने स्वयं सती आ रही हो
श्याम खुले केश,पैरों के छोटे पायल का शोर
मानों सारी खुशियों को साथ लेती आ रही हो।

सुन ऐ हमदर्द,मेरी जान हो तुम
तुम ही वसुंधरा,मेरा आसमान हो तुम
मेरा ख्याल,मेरी जिंदगी,मेरा खिताब हो तुम
और मेरे फ़कीरी रूह की आखिरी ख्वाब हो तुम

तुम ईमान हो,मेरा सम्मान हो
तुम ही सुख,तुम ही मेरा ज्ञान हो
इन विलखती पंक्तियों की जान हो
बस प्रेम नही,तुम मेरी पहचान हो

मेरे हृदय की तिश्नगी को समझो और विचार करों
कुछ आहें भरो ,
दो पल सोचो
और ये प्यार मेरा स्वीकार करो

“क्या हैं जल्दी इसमें इतनी?
सब्र की आग में जलना ही जय हैं
छोड़ गए अगर कभी मुझे तुम
क्या होगा हमारा? यही भय हैं।”

तो सुनों,प्रतिज्ञा हैं पूनम पावन चंद्र की
कि ये प्यार न कभी मिट पाएगा
हर साँस से ये बढ़ते-बढ़ते
मेरे साथ मृतिका में मिल जाएगा

बातों में न कोई मिथ्य
पाक हूँ मैं और ये इश्क गुरूद्वारा है
बस सहमति की देरी हैं
फिर वर्तमान सहित,भविष्य हमारा हैं

इतने में हँस कर वो बोली
“पगले,प्यार मुझे भी हैं तुझसे
और हाँ, कुछ अधिक ही हैं
जितना तू करता हैं मुझसे।”

खुशियों की सीमा न थी,
और दर्द का शहर तबाह था
हाथ थामें नाच रहे थे,
वो चाँद भी गवाह था

फिर शर्म की सीमा को लांघ के
बाहों में उसको भर लिया
सदियों के इश्क का अंजाम देख
हमदर्द को हमसफ़र कर लिया

दो पल के लिए सिर पीछे कर
उसके माथे को मैंनै चूम लिया
और उसकी अफ़ीमी आखों को देख
मध्य चाँदनी में झूम लिया

श्याम रात और विमुग्ध चंद्र भी
हमारे प्रेम को देख शर्मा गया
फिर खींच लिया उसने खुद को दूर
सच कहूँ तो मैं घबरा गया

हाथ थामें कहा उसने
“अब लौट जाओ,काफी हुई रात अभी
फिर इसी जगह बढ़ेगी कहानी
आगे भी तो करनी है मुलाकात अभी”

बस इतना कहकर पीछे मुड़े वो जाने लगी
ऐसे उसे देखने का दुख अपार था
चीख़ कर मैंने कहाँ “फिर मिलेंगे”
मुझे क्या पता,वो आखिरी बार था ….

अब,
मेरी सूर्ख आँखें उन अफ़ीमी आखों को तरसती है
वो आखिरी मुलाकात को याद कर प्रतिरात बरसती हैं
हम फिर न मिले,न दास्ताँ बढ़ी आगे
और उस रात को याद कर,हर रात सिसकती हैं

सोचता हूँ कि उस रोज़ काश
कुछ दे दिया होता,तो कुछ बात रहती
प्यार का तोहफा भी और
आखिरी निशानी के तौर पर उसे याद रहती

उसे ढ़ूँढ़ने,कई बार गया,बार बार गया
पर उसका वहाँ न कोई निशान मिला
उसकी गलियों ने अंत में विलख के कहाँ
लौट जा,तेरे हमदर्द को नया जहान मिला

अब,
हर घड़ी,हर क्षण पीड़ाग्रस्त
चाँद मुझे मेरी प्रतिज्ञा याद दिलाता हैं
देर निशा,उसकी बातों को सुना
मुझको अपनी ही बाहों में सुलाता हैं

अब,
प्रतिदिन प्रेम के प्रलय को शान्त कर,
दुर्वासा की तरह,उस रब को शाप देता हूँ
क्षण में बदल दिया सब कुछ मेरा
बस चाँद को ज़ख्मों का हिसाब देता हूँ

खुशी और उसके समान
दुख और प्रेम भी अनुकूल हैं
सच्चे स्नेह का सुखी सार निकले
हर बार,ये सोचना भूल हैं

कहानी नहीं, बस मुलाकात अधूरी हैं
कि अगर इश्क हैं तो बेवफ़ाई भी जरूरी हैं
हैं आज मैं और चाँद दोनों आधे
हाँ,पर हूँ खुश कि मेरी मोहब्बत पूरी हैं

मगर उम्मीद हैं अब भी कण-कण में
मिलेंगे फिर उसी चाँदनी तल में
मैं, तुम और वो विमुग्ध चंद्र
और जी लेंगे ये जीवन उसी पल में ….

-ब्रजनंदन गुप्ता।

Related Articles

प्यार अंधा होता है (Love Is Blind) सत्य पर आधारित Full Story

वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥ Anu Mehta’s Dairy About me परिचय (Introduction) नमस्‍कार दोस्‍तो, मेरा नाम अनु मेहता है। मैं…

दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34

जो तुम चिर प्रतीक्षित  सहचर  मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष  तुम्हे  होगा  निश्चय  ही प्रियकर  बात बताता हूँ। तुमसे  पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…

Responses

+

New Report

Close