आदमी बेचारा है सच में बेचारा आदमी
ढूँढने की ऐसी लगी है आदत इसको
कुछ ना कुछ ढूँढने में लगा है आदमी
पल पल यह है कुछ ना कुछ ढूँढता
जब कुछ हो रहा हो जिंदगी में ग़लत
यह उसको सही करने की राह ढूँढता
जब सब चल रहा हो ज़िन्दगी में सही
ढूँढ उसमें ग़लत, उसको ना सही छोड़ता
आदमी बेचारा है सच में बेचारा आदमी
……. यूई
वाह बहुत सुंदर रचना ढेरों बधाइयां
Nice line