आपकी बात सुनकर
निरुत्तर हो गए हम
आपकी बात सुनकर
निकल पाया न मुंह से
एक भी शब्द छनकर।
कह दिया आपने सब
कह नहीं पाए थे जो हम,
आपकी बात सुनकर
सोचते रह गए हम।
कभी उस ओर दौड़ा
कभी इस ओर दौड़ा
कहां सच का ठिकाना
खोजता रह गया मन।
आपने सच दिखाकर
बोलती बंद कर दी,
उचित-अनुचित किधर है
समझ सब कुछ गए हम।
आपकी बात सुनकर
निरुत्तर हो गए हम,
कह दिया आपने सब
कह नहीं पाए थे जो हम
वाह पाण्डेय जी, बहुत खूब
वाह बहुत खूब, अतिसुन्दर कविता सर
लाजवाब
यह कविता मेरी नजर में बहुत ही उच्च भाव समाए हुए है। बहुत खूब लिखा है
मन के भावों का बहुत ही खूबसूरती से वर्णन किया है ।
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति एवम् शानदार प्रस्तुति ।
Nice
काव्य में स्पष्टता का अभाव लगता है