आलम

मुहब्बत के नश्तर मिटाने वाले,
तुझे क्या पता है चाहत ए आलम।
तू ने कभी मुहब्बत 💘की ही नहीं,
तू क्या समझे मेरे दर्द ए आलम।।

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Responses

  1. हमने मुहब्बत को नश्तर पे रखा है। क्योंकि यही नश्तर
    न जाने कितने को गला घोंट दिया। जो जीता नश्तर के
    धार पर चल कर जीता। जो नहीं जीता वह सारे जहाँ
    से गया। हमने मुहब्बत को लोहपट्टी संबोधित करके ही
    जमाने के सामने फरियाद किया है।

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