आलोक हो
आलोक हो महाकाल तुम
मेरे जीवन का आधार तुम
कल्पना की दहलीज़ पर
आये हो बन मेहमान तुम…..
मीत हो तुम प्यार का संगीत हो
और धीरज का दमकता गीत हो
रूबरू होने का मौका नहीं मिला
फिर भी पहचान की लकीर हो….
कुछ पंक्तियाँ याद आ रही हैं
उन सभी की तदबीर हो तुम
कभी भी कोई बात नहीं हुई
ज़िंदादिली की तस्वीर हो तुम ….
वफा की कीमत और भी बढ़ गई
जब से बन कर आये मेरी तकदीर हो तुम।
Good ✍
धन्यवाद
👏👏
😁😁😄
Good
Dhnyawad
Very nice
धन्यवाद आपका
खूबसूरत कविता
Thanks
😋😋
Thanks
Great
Thanks
👌👌👌
Thanks
Good
Thanks bhai
Good
मार्मिक अभिव्यक्ति की