इश्तेहार सी ज़िंदगी
इश्तेहार सी हो गयी है ज़िंदगी मेरी
जैसी दिखती है, होती नहीं कभी,
सभी के हाथों में सुबह सवेरे पहुंच जाती है,
मगर नज़रों में किसी के होती नहीं कभी,
हर रोज पढ़े जाते है पन्ने इसके इस जहाँ में,
मगर सुलह किसी से होती नहीं कभी॥
राही (अंजाना)
Bahut khoob
धन्यवाद् भाई जी
Good