Categories: हिन्दी-उर्दू कविता
Tags: संपादक की पसंद
Related Articles
दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34
जो तुम चिर प्रतीक्षित सहचर मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष तुम्हे होगा निश्चय ही प्रियकर बात बताता हूँ। तुमसे पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…
शायरी संग्रह भाग 2 ।।
हमने वहीं लिखा, जो हमने देखा, समझा, जाना, हमपे बीता ।। शायर विकास कुमार 1. खामोश थे, खामोश हैं और खामोश ही रहेंगे तेरी जहां…
दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-9
दुर्योधन भले हीं खलनायक था ,पर कमजोर नहीं । श्रीकृष्ण का रौद्र रूप देखने के बाद भी उनसे भिड़ने से नहीं कतराता । तो जरूरत…
आओ कुछ बेहतर करते हैं..
‘आओ कुछ बेहतर करते हैं.. कुछ बाहर जग की परिधि में, कुछ अपने भीतर करते हैं.. आओ कुछ बेहतर करते हैं.. आओ कुछ बेहतर करते…
गुनहगार हो गया
सच बोलकर जहाँ में गुनहगार हो गया, लोगों से दूर आज मैं लाचार हो गया। जो चापलूस थे सिपेसालार बन गए, मोहताज़ इक अनाज़ से…
बहुत खूब
बहुत बहुत धन्यवाद
वाह सर, जीवन साथी की सराहना के नए उपमान और घर और बाहर उचित सम्मान देना आपकी लेखनी की अनूठी विशेषता का ही परिचायक है । लेखनी को प्रणाम है सतीश जी..
आपके द्वारा की गई समीक्षा अति उत्साहवर्धक है, गीता जी, आपकी इस लेखनी को अभिवादन। बहुत सुंदर समीक्षा करती हैं आप।
🙏🙏
वास्तव में बहुत बेहतरीन लिखती हैं गीता मैम
कविता तो लाजवाब है ही, लेकिन बात आपकी काबिलेतारीफ समीक्षा की है, जो हर किसी की कविता में फिट बैठती है।
Thank you very much Chandra mam..
बहुत खूब कविता
सादर धन्यवाद जी
उच्च कोटि।
सादर धन्यवाद
वाह वाह क्या कहने
सादर धन्यवाद शास्त्री जी
Nice poem
Thank you ji