उम्र पार की
इन सुर्ख अधरों को
मेरे गालों तक मत लाना
चाहत और बढ़ जाएगी
प्यार की
अपनी जुल्फों को अब
और मत लहराना
रात लंबी हो जाएगी
इंतजार की
तड़पते रहेंगे उम्र भर मगर
जुबां से कुछ ना कहेंगे
उनको भी तो खबर होगी
दिल ए बेकरार की
तुम्हारी यादों को शब्दों में
किस तरह ढालूं
सुबह की धूप हो या
कली अनार की
कभी सावन कभी भादो
जैसी लगती हो तुम
सच क्या है देखूं
एक बार उम्र प्यार की।
वीरेंद्र
Nice
वाह
रोमांटिक कविता
ललित काव्य
प्रेम की पराकाष्ठा को दिखाती हुई सुंदर रचना श्रृंगार रस से परिपूर्ण