ऊर्जा पुंज
ऊर्जा पुंज
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तुम ऊर्जा पुंज …..और
तुम से बहता अविरल तेज!
बन जाता है मेरे लिए प्रेरणा .. सृजन की।
मेरे हृदय में बहने लगती है धारा…..
जो जा मिलती है तुमसे…..
और उपजने लगती हैं कुछ नन्ही कोपल
जो जगाती है मुझे नींद से……।
उठो!
चलो लिखना है तुम्हें।
और मैं एक आज्ञाकारी शिष्या सी, ”जी आचार्य जी “कहकर चल पढ़ती हूं कागज और कलम की ओर……
देने आकार उपजती कोपलों को …
जो हृदय के वेग से बाहर निकलने को आतुर हैं
जैसे कलम से उड़ रहे हो कुछ शब्द और स्वयं ही किसी कोरे कागज पर किसी पहेली के हल की तरह लगते जा रहे हो यथा स्थान!
निमिषा सिंघल
Nyc
Nice
Nice
वाह
Nice