ऋतुराज बसंत

ऋतुराज बसंत फिर आया है,
जड़ पतझड़ फिर मुस्काया है।

पेड़ पर हैं नव कोपल फूटी,
फिर कोयल ने राग सुनाया है।

पिली – पिली सरसों लहराई,
भीनी खुशबू को महकाया है।

छिप कर के बैठे थे जो पंक्षी,
सबने मिलके पंख फैलाया है।

हर्षित हुआ फुलवारी सा मन,
तितली बन फिर मंडराया है।

सरस्वती माँ की अनुकम्पा से,
क्या लिखना हमको आया है।

राही कहे खुलकर सबसे की,
ऋतुराज बसंत फिर छाया है।।

राही अंजाना

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Responses

  1. हर्षित हुआ फुलवारी सा मन,
    तितली बन फिर मंडराया है।

    सरस्वती माँ की अनुकम्पा से,
    क्या लिखना हमको आया है।
    —— बहुत सुंदर पंक्तियों से सजी अनुपम रचना, वाह, अत्युत्तम भाव।

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