एक परदेशी ने तुम पर भरोसा किया
एक परदेशी ने तुम पर भरोसा किया।
तुम कपटी हुई , उससे धोखा किया ।।
नारी तो होती है ममता की मूरत।
क्या तुझको नहीं थी उसकी जरुरत।।
ज़िन्दगी के बदले मौत का तोफा दिया।
एक परदेशी ने तुम पर भरोसा किया।।
अमर सुधा रस का तुम में है वास।
फिर क्योंकर जहर को बनाया रे खास।।
मित्र भी गए मित्रता भी गई
पाक रिश्ते को तूने बदनाम कर दिया।।
एक परदेशी ने तुम पर भरोसा किया।
बहुत ही सुन्दर तरीके से समसामयिक प्रकरण के संदर्भ में पंक्तियाँ लिखी हैं। कवि के भीतर की संवेदना बाहर छलक पड़ी है। लेखनी को प्रणाम
बहुत ही अच्छी ।
नर हो या नारी दोनों भर्त्सना के अधिकारी हैं
कदम-दर-कदम बढ़ाने से पहले, जरूरी थोड़ी-सी तैयारी है
ज़िन्दगी की कुछ कड़वी सच्चाइयों को बयां करती हुई, हृदय – स्पर्शी रचना।
बहुत खूब
बहुत सुन्दर