Categories: मुक्तक
Related Articles
दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34
जो तुम चिर प्रतीक्षित सहचर मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष तुम्हे होगा निश्चय ही प्रियकर बात बताता हूँ। तुमसे पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…
शायरी संग्रह भाग 2 ।।
हमने वहीं लिखा, जो हमने देखा, समझा, जाना, हमपे बीता ।। शायर विकास कुमार 1. खामोश थे, खामोश हैं और खामोश ही रहेंगे तेरी जहां…
ख्वाहिश
समझदार हो गर, तो फिर खुद ही समझो। बताने से समझे तो क्या फायदा है॥ जो हो ख़ैरियतमंद सच्चे हमारे, तो हालत हमारी ख़ुद ही…
मां तूं दुनिया मेरी
हरदम शिकायत तूं मुझे माना करती कहां निमकी-खोरमा छिपा के रखती कहां भाई से ही स्नेह मन में तेरे यहां रह के भी तूं रहती…
दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-9
दुर्योधन भले हीं खलनायक था ,पर कमजोर नहीं । श्रीकृष्ण का रौद्र रूप देखने के बाद भी उनसे भिड़ने से नहीं कतराता । तो जरूरत…
उत्तम रचना
बहुत बहुत आभार
सुंदर
, धन्यवाद सर
जिंदगी के उतार चढ़ाव को प्रदर्शित करती बहुत सुंदर रचना
Thank you so much sir
ज़िन्दगी के बारे में विचार करती हुई रचना…. सुन्दर प्रस्तुति
बहुत बहुत धन्यवाद मैम
जिंदगी क्या है कुछ वक्त का एक कारवां है,
जो चल पड़ता है किसी अनजान मंजिल को पाने के लिए
समय के साथ साथ मंजिलें भी बदलती रहती हैं
रास्ते बदलने पड़ते हैं इन मंजिलों तक जाने के लिए
बचपन जवानी बुढ़ापा कुछ पड़ाव हैं जिंदगी के रास्ते में
इन पड़ावों से गुजरना पड़ता है जिंदगी बिताने के लिए
बहुत से साथी मिलते रहते हैं कुछ विछड़ भी जाते हैं
मगर रुकना मना है बिछड़ों को वापिस लाने के लिए.
रास्ते भर किसी एक सही साथी की दरकार रहती है
वर्ना मंजिल पे भी कुछ नहीं बचता सिवा पछताने के लिए.
बस जान लो कि ताउम्र सिर्फ चलते रहने से कुछ नहीं होता
एक सही दिशा जरूरी है सही मंजिल तक जाने के लिए.
बहुत सुंदर 🙏🙏