ऐ जिन्दगी
ऐ जिन्दगी ! कभी तो तू मेरी होती
जिधर को मैं कहती, उधर रूख़ करती ।।
तू जिधर इशारा करती, मुङ जाते हैं उधर
तेरे आगे अपनी मर्जी चलती है किधर
काश! बस एक बार मेरा अनुसरण करती।
थक गये हैं, तेरी इच्छाओं की कद्र करके
भीगी है पलकें मेरी, उभरे हैं जो दर्द बनके
इस पीङा की अनुभूति तू भी जिया करती ।
पथ पर पथिक बहुत हैं पर,अपनी-अपनी मंजिल है
कहाँ मिलता है सबको , जो जिसके काबिल है
मनचाही मंजिल का फिक्र,तू भी करती ।
बहुत सुंदर रचना
धन्यवाद
हृदय स्पर्शी पंक्तियां।
आपकी टिप्पणी उससे भी ज्यादा खूबसूरत हैं ।सादर आभार ।
Welcome n Thank you suman ji.
पथ पर पथिक बहुत हैं पर,अपनी-अपनी मंजिल है
कहाँ मिलता है सबको , जो जिसके काबिल है,
आपकी कविता का भावपक्ष अत्यंत मजबूत है,
कलापक्ष भी अपनी सुंदरता लिए हुए है, वाक्यांत और तुक का सुन्दर समन्वय है ,
बहुत खूब
सादर आभार ।
तमाम पक्षो को अपनी टिप्पणी में पिङोने के, बहुत बहुत धन्यवाद ।
बेहतरीन
सादर आभार सर
काश ऐसा ही होता।
हाँ, अमीतजी
यदि ऐसा ही होता
तो शायद यह जहाँ
अब से भी ज्यादा खूबसूरत होता ।
सादर आभार
“पथ पर पथिक बहुत हैं पर,अपनी-अपनी मंजिल है
कहाँ मिलता है सबको , जो जिसके काबिल है
मनचाही मंजिल का फिक्र,तू भी करती ।”
बहुत सुंदर पंक्तियां
जिंदगी किस मोड़ पर ले जाएं किसी को कुछ नहीं पता,
हम क्या सोचते हैं और क्या होता है उसका कोई अनुमान नहीं होता, कभी-कभी अच्छा भी होता है और कभी बुरा भी।
बहुत ही सुंदर भाव
बेहतरीन प्रस्तुति
वाह क्या बात है
सादर धन्यवाद
मार्मिक
सादर आभार