करें भरोसा आखिर किस पर?

कानून के रक्षक
भी अब
भक्षक हो गए ,
करें भरोसा
आखिर
किस पर?
खाकी वर्दी
भी
गुलाम बन
हुक्म बजाती
सफेदपोश की।
काले कोट के जेब
बड़े हो गए,
करें भरोसा
आखिर
किस पर?
लुच्चे,
लम्पट,
चोर,
आतंकी
खुल्ला
घूम रहे हैं
देखो।
हिंसक भीर
भेरिये की चहुदिश
हो गई
ज़िन्दगी
मुश्किल खरगोश की।
साधु
संत
सन्यासी
को चोर समझ
अनाचार
कर रहा समाज।
मुर्खता और
गलतफहमी के
सब शिकार
हो गए,
करें भरोसा
आखिर
किस पर?

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