कविता – कारगिल की चोटी से |
कविता – कारगिल की चोटी से |
घुस आया धोखे से दुश्मन
पर बिरो ने मार भगाया था |
दिया जवाब करारा उनको ,
छट्ठी दूध याद कराया था |
काँप उठे हृदय कायरो ,
हिन्द जवानो की ललकारो से |
थर थर थर्राए विरो के यलगारों से |
चुन चुनकर मारा सबको
मौत की नींद सुलाया था |
लाख लगाया ज़ोर दुशमन ने |
भारत पर ज़ोर चल न सका |
चाहा धकेल पीछे कर दे विरो
थक हारा पाँव भारत हिल न सका |
विजय हुई जवानो ने झण्डा,
कारगिल की चोटी से लहराया था |
सत सत नमन वीर शहिदों ,
नमन है तुम्हारी जननी को |
सदा अमर रहेगा नाम तुम्हारा |
जबतक आबाद रहेगा हिन्द हमारा |
विश्व विजयी है हिन्द देश ,
विरो ने दुशमन याद दिलाया था |
श्याम कुँवर भारती (राजभर)
कवि /लेखक /गीतकार /समाजसेवी
बोकारो झारखंड मोब -9955509286
वाह वाह क्या बात है श्याम जी।
शरहद के उन वीरों के साथ साथ
आपकी लेखनी को भी सलाम जी।।
हार्दिक आभार आपका आदरणीय पंडित जी जय हिन्द जय भारत
बीर रस से परिपूर्ण सुंदर रचना
हार्दिक आभार आपका गीता जी जय हिन्द
Jay Hind
पांडेय जी जय हिन्द जय भारत
उत्तम रचना