कविता – बरखा तुम आओ

कविता – बरखा तुम आओ
मिटे जलन तपन गर्मी बरस तुम जाओ |
मनाए हम उत्सव तेरा बरखा तुम आओ |
तप रहे खेत ताल नदी पोखर तुम कहा |
फटी जमीन प्यासे सब पशु पक्षी यहा |
कबसे राह निहारे तेरी तरस तुम खाओ |
मनाए सब उत्सव तेरा बरखा तुम आओ |
बृक्षों हरियाली नहीं गाती कोयल मतवाली नहीं |
दिखे जन खुशहाली नहीं होती तन रखवाली नहीं |
तपते तन अब कर सरस तुम जाओ |
मनाए सब उत्सव तेरा बरखा तुम आओ |
बन के फुहार बारिस बौछार तुम लपको |
रिमझिम मधुर झंकार बन तुम हर्षो |
संग मेघो लबालब खेतो मल्हार तुम गाओ|
मनाए सब उत्सव तेरा बरखा तुम आओ |
प्रिय को प्रियतमा की खबर मिली नहीं |
हिय मिलन की चाह कली खिली नहीं |
काली घटाओ प्रिया जुल्फों लिपट तुम जाओ |
मनाए सब उत्सव तेरा बरखा तुम आओ |
बन बिजली चमको सजनी रुप सम दमको |
धरती कोख पनपे रूपसी जस तुम लहको |
श्रिंगार प्रकृति तन मन कर तुम जाओ |
मनाए सब उत्सव तेरा बरखा तुम आओ |
श्याम कुँवर भारती (राजभर )
कवि/लेखक /समाजसेवी
बोकारो झारखंड ,मोब 9955509286

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