कविता : वो सारे जज्बात बंट गए

गिरी इमारत कौन मर गया
टूट गया पुल जाने कौन तर गया
हक़ मार कर किसी का
ये बताओ कौन बन गया
जिहादी विचारों से
ईश्वर कैसे खुश हो गया
धर्म परिवर्तन करने से
ये बताओ किसे क्या मिल गया
जाति ,धर्म समाज बंट गये
आकाओं में राज बट गये
आज लड़े कल गले मिलेंगे
वो सारे जज्बात बंट गए ||

नफरतों की आग में
यूँ बस्तियां रख दी गईं
मुफ़लिसों के रूबरू
मजबूरियां रख दी गईं
जीवन से मृत्यु तक का सफर ,कुछ भी न था
बस हमारे दिलों में
दूरियां रख दी गई
लोगों ने जंग छेड़ी
जब भी कुरीतियों के खिलाफ
उनके सीने पर तभी
कुछ बरछियाँ रख दी गईं ||

मुजरिम बरी हो गया
सबूत के अभाव में
देखो न्याय की आश में
कितनी जमीनें बिक गईं
बेकारी में पीड़ित है
देश का हर कोना
फिज़ा -बहार ,धूप -छांव
यूँ ही बदल गई
लोगों ने जब कभी , एकता का मन किया
धर्म की दोनों तरफ ,बारीकियां रख दी गईं ||

‘प्रभात ‘ भूमिकाएं अब नेताओं की ,श्यामली शंकित हुई
मुस्कान के सूखे सरोवर ,भ्रष्ट हर काठी हुई
दिन के काले आचरण पर ,रात फरियादी हुई
रोशनी भी बस्तियों में ,लग रही दागी हुई
डगमगाती है तुलायें , पंगु नीतियां हुई
असली पर नकली है भारी ,मात सी छायी हुई ||

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Responses

  1. मुस्कान के सूखे सरोवर ,भ्रष्ट हर काठी हुई
    दिन के काले आचरण पर ,रात फरियादी हुई
    रोशनी भी बस्तियों में ,लग रही दागी हुई
    डगमगाती है तुलायें , पंगु नीतियां हुई
    असली पर नकली है भारी ,मात सी छायी हुई ||

    बहुत उम्दा अभिव्यक्ति
    कविता के सभी तत्व मौजूद है आपकी रचना में
    साथ ही संवेदनशील और १००% सत्य लिखा है आपने
    इसके लिए कहीं ना कहीं सरकार और मन की गन्दगी जिम्मेदार है…

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