कविता : समय का पहिया
मानो तो मोती ,अनमोल है समय नहीं तो मिट्टी के मोल है समय कभी पाषाण सी कठोरता सा है समय कभी एकान्त नीरसता सा है समय समय किसी को नहीं छोड़ता किसी के आंसुओं से नहीं पिघलता समय का पहिया चलता है चरैवेति क्रम कहता है स्वर्ण महल में रहने वाले तेरा मरघट से नाता है सारे ठौर ठिकाने तजकर मानव इसी ठिकाने आता है || भूले से ऐसा ना करना अपनी नजर में गिर जाए पड़ना ये जग सारा बंदी खाना जीव यहाँ आता जाता है विषय ,विला... »