कहना तो बहुत कुछ है तुझसे ! !
कहना तो बहुत कुछ है तुझसे
लेकिन कह कहाँ पाती हूँ।
दिल की बेबसी यह है कि
बिन कहे रह भी कहाँ पाती हूँ।
यूँ तो हमें अकेले रहने की
बुरी आदत है साहब!
पर तेरे बिन अधूरी रह कहाँ पाती हूँ।
तू अगर आस- पास होता तो
समझ जाता हाल-ऐ-दिल मेरा
यूँ तो बहुत बोलती हूँ मैं पर
इजहारे इश्क कहाँ कर पाती हूँ।
कहना तो बहुत कुछ है तुझसे,
लेकिन कह कहाँ पाती हूँ ! !
Sundar rachana
बहुत बहुत आभार
शानदार रचना,
दो लाइनें मेरी तरफ से
अजीब लहरें दिल के समंदर की, कहती है
तेरे किनारे आ तो जाती हूं, पर लौट कहाँ पाती हूँ
वाह जी वाह क्या बात है
बहुत खूबसूरत पँक्तियाँ लिखी हैं आपने।।
🙏🏼🙏