काला पानी (भाग 1)
काला पानी के नाम से,
प्रसिद्ध वह स्थान है
जहां भेजे जाते थे ,
भारत के स्वतंत्रता सेनानी।
सैल्यूलर जेल के नाम से
जो वहीं विद्यमान है ।
पोर्ट ब्लेयर के नाम से
आजकल उसको जाना जाता है,
कोई वापिस नहीं आया, जो गया वहां
ऐसा माना जाता है ।
वहां वीर-संवारकर जी ,
का कमरा भी देखो,
दस फुट का आकार है
फांसी घर को देख के,
हृदय में मच गया,
हा-हाकार है ।
अंग्रेजों ने जाने कितने,
भयानक जुल्म ढहाए थे
कोड़े मारे नंगी पीठों पर,
वो कितने करहाए थे ।
बोरों में भरके खुजली चूरन,
जबरन पहनाया जाता था
जब वो दर्द से करहाते थे,
अंग्रेज़ों द्वारा आनन्द उठाया जाता था
डांसिंग इंडियन कह कर उनको,
ठहाके लगाए जाते थे ।
इंसानों से कोल्हू चलवाकर,
नारियल तेल निकलवाए जाते थे।
खाने में फ़िर कंकड़ वाली,
दाल ही दे दी जाती थी ।
रोटी में भी अक्सर मिट्टी
की शिकायत आती थी ।
कैसे-कैसे ज़ुल्म सहे थे,
सुन के भी दिल थर्राता है,
ऐसे किस्से सुन-सुन के,
जी तो घबराता है ।..
कवि गीता जी की इस कविता में भारत की ऐतिहासिकता संघर्ष व स्थान की बारीकियों का बेहतरीन व सफल चित्रण किया गया है। जो कि कथ्य पर उनकी बारीक पकड़ को परिलक्षित करता है। भारत की ऐतिहासिकता व संघर्ष पर ऐसी बेजोड़ पंक्तियाँ कोई मझा हुआ रचनाकार ही लिख सकता है। वर्णनात्मक शिल्प और बोधगम्य भाषा में बेहतरीन रचना है यह
इस शानदार समीक्षा हेतु आपका हार्दिक धन्यवाद सतीश जी । आपकी प्रेरक समीक्षाएं हमेशा ही मेरा मार्ग दर्शन करती हैं । आपकी लेखनी से निकली सुंदर और सटीक टिप्पणी के लिए आपका आभार
अतिसुन्दर रचना
Thanks Piyush ji for your precious compliment.
वाह गीता जी बहुत खूब
आपका हृदय तल से धन्यवाद चंद्रा मैम 🙏 बहुत बहुत आभार
बहुत सुंदर
बहुत बहुत धन्यवाद आपका जोशी जी🙏
बढ़िया, बहुत खूब
बहुत बहुत धन्यवाद सर 🙏 आभार
काबिल- ए-तारीफ़
सादर धन्यवाद भाई जी 🙏 बहुत बहुत आभार