कैसे कोई मुझको कवी बुलाता
कोई मुझे यहां कवी बुलाता
कोई बोले शब्दों का खिलाड़ी
कोई समझे बुनता मैँ लड़ियाँ
कोई समझे चुनता मैँ कलियां
ना मैँ कवी ना कोई खिलाड़ी
मैँ तो बस एहसास का पुजारी
उतार अंतर उसके भाव को पूरा
लपेटता सही शब्दों में उसको
छंदों की लड़ियों में जड़ उसको
सच के गहनो से सजाता उसको
कोई कहता मेरी कविता सुंदर
मन कहता मैँ हूँ आभारी तुम्हारा
तुमने इस कविता के कहीं अन्दर
छुपे उस भाव को मुझसा समझा
गर कोई भाव को समझ ना पाता
कैसे कोई मुझको कवी बुलाता
…… यूई
क्या बात है
Nice thought