“कोई राब्ता तो हो!!.”

ღღ__ठहरा हुआ हूँ कब से, मैं तेरे इन्तज़ार में;
आख़िर सफ़र की मेरे, कोई इब्तिदा तो हो!
.
मंजिल पे मेरी नज़र है, अरसे से टिकी हुई;
पहुँचूं मैं कैसे उस तक, कोई रास्ता तो हो!
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किस तरह छुपाऊँ, जो ज़ाहिर हो चुका उसपे;
मैं कहना चाहता भी हूँ, पर कोई वास्ता तो हो!
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वो कहता है ढूँढ लेंगे; तुझे दुनिया की भीड़ से;
मगर उससे पहले मेरे यार, तू लापता तो हो!!
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फिक्र तो बहुत होती है, “अक्स” उसको तेरी;
हाल पूछे भी तो भला कैसे, कोई राब्ता तो हो!!….‪#‎अक्स‬

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