कोहरा..

कोहरा देख कर , मैं इक पल को रुकी थी,
मैं बढ़ती रही आगे, और कोहरा छंटता गया…

*****✍️गीता*****

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Responses

  1. मैं बढ़ती रही आगे, और कोहरा छंटता गया…
    बहुत खूब लिखा है आपने गीता जी, आगे बढ़ने की बेहतरीन भावना का चित्रण एक सुलझी हुई लेखनी ही कर सकती है। आपकी प्रतिभा व क्षमता को अभिवादन

    1. आपकी सटीक समीक्षा और भाव को समझने के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद सतीश जी । सराहना के लिए आपका बहुत बहुत आभार ।

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