चाँद सदा ही मुस्काए
दर्पण कब खुद सजता है,
दर्पण के आगे हम सजें।
चाँद रहता है गगन में,
पर मुझे लगे उतरे मेरे आँगन में
हर रात को जब मैं सो जाऊं,
वो रजत छिड़कने आ जाए
तारों की सुन्दर टोली संग,
चाँद सदा ही मुस्काए।।
_____✍️गीता
दर्पण कब खुद सजता है,
दर्पण के आगे हम सजें।
चाँद रहता है गगन में,
पर मुझे लगे उतरे मेरे आँगन में
हर रात को जब मैं सो जाऊं,
वो रजत छिड़कने आ जाए
तारों की सुन्दर टोली संग,
चाँद सदा ही मुस्काए।।
_____✍️गीता
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बहुत ही सुन्दर रचना
हार्दिक आभार चन्द्रा जी
बहुत खूब
बहुत-बहुत धन्यवाद कमला जी
कवि गीता जी की लेखनी से बहुत सुंदर कविता का सृजन हुआ है। कवि मन के खूबसूरत मनोभाव अंकित हुए हैं। भाव और शिल्प दोनों ही अति उत्तम हैं।
इतनी सुन्दर और उत्साह वर्धक समीक्षा हेतु आपका बहुत बहुत धन्यवाद सतीश जी, हार्दिक आभार
बहुत सुंदर
बहुत-बहुत धन्यवाद सर
वाह अति उत्तम
बहुत-बहुत धन्यवाद सर 🙏
वाह वाह
प्रोत्साहन हेतु धन्यवाद भाई जी
सही कही गीता जी। दर्पण ने कभी सजने की ज़रूरत ही नहीं समझी।
सुंदर अभिव्यक्ति
सुंदर समीक्षा हेतु बहुत-बहुत धन्यवाद अनु जी
दर्पण कब खुद सजता है,
दर्पण के आगे हम सजें।
चाँद रहता है गगन में,
पर मुझे लगे उतरे मेरे आँगन में
हर रात को जब मैं सो जाऊं,
वो रजत छिड़कने आ जाए
तारों की सुन्दर टोली संग,
अति सुंदर रचना