ज़रा ठहर कर
मैं हंसी तो हंस दिया,
संग मेरे ये जहां।
वरना ,किसी को, किसी के,
अश्क देखने की फुर्सत कहां।
इसलिए .गम अपने छिपाकर,
मैं भी, हंस लेती हूं यहां।
कलम चलाकर कर लेती हूं,
दिल के जज्बातों को बयां ।
ज़रा ठहर कर, कौन किसकी सुनता है यहां।
वाह वाह
सादर धन्यवाद 🙏
यथार्थ काव्य वर्णन
बहुत बहुत धन्यवाद 🙏
खूबसूरत चित्रण
बहुत बहुत धन्यवाद 🙏🇮🇳
Atisunder
बहुत बहुत धन्यवाद भाई जी 🙏🇮🇳
ब
बहुत ही उम्दा
Thank you mohan ji🙏
बहुत सुन्दर
धन्यवाद जी
क्या बात है salute
बहुत बहुत धन्यवाद जी
अतिसुन्दर
Thank you very much Piyush ji