जूनून – काश सपने मैं जी लू

बेवजह ख्वाब को हम जिए जा रहे हैं

हकीकत को धोखा दिए जा रहे हैं

पता है मयस्सर, न होंगी ये ख्वाहिश

मगर कोशिशें हम, किए जा रहे हैं

मिली मुफ्त में है, ये नींदे ये ख्वाहिश

अगर टूटी ख्वाहिश, बेशक न रोना है

खुलेगी जब आंखें, जनाब

सामना हकीकत से ही होना है

✍️स्वरचित कविता-प्रिया वर्मा

Related Articles

दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34

जो तुम चिर प्रतीक्षित  सहचर  मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष  तुम्हे  होगा  निश्चय  ही प्रियकर  बात बताता हूँ। तुमसे  पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…

प्यार अंधा होता है (Love Is Blind) सत्य पर आधारित Full Story

वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥ Anu Mehta’s Dairy About me परिचय (Introduction) नमस्‍कार दोस्‍तो, मेरा नाम अनु मेहता है। मैं…

Responses

  1. स्नेही मित्रगणो से विनम्र निवेदन है की वे कृपया मेरी स्वरचित कविता देखे और मेरी प्रेरणा बनकर मेरा मार्गदर्शन करें

  2. आखिर के शैर को शुरूआत में रखते और शुरुआत वाली
    पदों को climex में तो अच्छा होता।
    फिर भी बहुत अच्छी रचना।

  3. आप सभी स्नेही मित्रगण को सादर प्रणाम और हार्दिक आभार की आपने मेरी रचना केवल देखा ही नहीं बल्कि मार्गदर्शन भी किया, आशा है आगामी दिनों मे आपका स्नेह बढ़ता रहेगा 🙏🙏

+

New Report

Close