तीन मित्र
तीन मित्र थे अपने
वफादारी के परम मिसाल।
मरणासन्न होकर मैं
तीनों से पूछा एक सवाल।।
कौन चलोगे मेरे साथ
किसको पास सदा मैं पाऊँगा?
बहुत दिया मैं साथ
नहीं अब तेरा साथ निभाऊँगा।
बोला पहिला मित्र
है तेरा मेरा साथ यही तक।
घर से निकलकर
काँधे देकर मुख पर मिट्टी डालूँगा।
धोप -थाप के कब्र को
सुन्दरतम कर सुन्दर फूल चढ़ाऊँगा।।
बोला दूजा मित्र
इसके आगे क्या कर सकता हूँ?
जन्म से पहले व जीवन भर का
साथी मैं तुमसे अब भी कहता हूँ।।
बाद कयामत और जन्मों तक
प्यारे मैं तेरा साथ निभाऊँगा।
तीजा का ये कहना
तेरा हरदम साथ निभाऊँगा।।
पहिला मित्र माल है भैया
दूजा इयाल कहलाता है।
तीजा साथी आमाल है
जो पग-पग साथ निभाता है।।
माल इयाल को छोड़ ‘विनयचंद ‘
अर्जन कर आमाल सदा।
जीवन सुखमय होंगे तेरे
सुखकर हो इन्तकाल सदा।।
माल :धन
इयाल: परिवार
आमाल: कर्म, सेवा
Good
Jai ho pandit ji. Nice lines 🙏🙏
Good