तुम शायद जान नहीं पाए
*एक अंश तुम्हारा मुझमें है, तुम शायद जान नही पाए।
हर पल मैं तुममे दिखता हूँ, तुम शायद मान नहीं पाए।।*
अब कैसे मैं तुमको दिखलाऊं ये सपना नहीं हकीकत है
जीवन का हर एक रंग ढंग यह निश्चित नहीं कदाचित है
अब तो खोलो आँखें अपनी जीवन को जान नहीं पाएं
*हर पल मैं तुममे दिखता हूँ, तुम शायद मान नहीं पाए।।*
आयाम तेरे इस जीवन का फिर कौन भला क्यों समझेगा
तू आज नही तो कल लेकिन इस संसय में ही तड़पेगा
यह कुंठा है तेरे मन की जिससे तुम पार नहीं पाए
*हर पल मैं तुममे दिखता हूँ, तुम शायद मान नहीं पाए।।*
मैं भीष्म नहीं ना अर्जुन हूँ ना और कोई अंदाज़ मेरा
तेरे जीवन पर न्यौछावर ये सपनो का संसार मेरा
अब साथ नहीं तो लगता है जीवन को जान नहीं पाए
*हर पल मैं तुममे दिखता हूँ, तुम शायद मान नहीं पाए।।*
सुंदर अभिव्यक्ति
धन्यवाद
Beautiful poetry
धन्यवाद