दादी माँ की बरसी

आंगन में एक पाटा रखकर
पण्डित और परिचितों को
बुलाकर
लगा तैयारी में पूरा घर
पकवान और मिष्ठान
बनाकर
हाथ जोड़कर सब बैठे हैं
दादी की बरसी है आज
एक बरस होने को आया
पर दादी को कोई भूल ना
पाया
लगता है जैसे कल की ही
बात हो
दादी बैठी थी आंगन में
कुछ हँसकर बोल रही थी
अपनी पोटलियां टटोल
रही थी
मैं लेकर चाय गई दादी के पास
उन्होनें दिया था आशीर्वाद
कुछ बातें उनकी आज जब
मन करता है सुन लेती हूँ
उनकी आवाज रिकार्ड है
मेरे पास
आज उनकी बरसी की बेला
भी आ गई
आगन की वो जगह सदा के
लिए सूनी हो गई..

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Responses

  1. वाह,दादी जी की याद में बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति…
    दादी जी जहां भी होंगी प्रज्ञा,तुम्हे आशीष ही दे रही होंगी।

  2. दादी माँ को सादर श्रद्धांजलि देती सुन्दर पंक्तियाँ। बहुत खूब प्रज्ञा जी, हमारी ओर से भी दादी जी को शत शत नमन।

  3. पारिवारिक स्नेहित सम्बन्ध हमेशा के लिए हमारे साथ होते हैं। एक स्मरण के रूप में, एक अनुभूति के रूप में, आत्मा और परमात्मा के रूप में। जिसे आपने सुन्दर तरीके से दर्शाया है।
    बहुत खूब।

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