Categories: हिन्दी-उर्दू कविता
anupriya sharma
Hello!
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शायरी संग्रह भाग 2 ।।
हमने वहीं लिखा, जो हमने देखा, समझा, जाना, हमपे बीता ।। शायर विकास कुमार 1. खामोश थे, खामोश हैं और खामोश ही रहेंगे तेरी जहां…
हम क्या-क्या भूल गये
निकले हैं हम जो प्रगति पथ पर जड़ों को अपनी भूल गये मलमल के बिस्तरों में धँस के धरा की शीतलता भूल गये छूकर चलते…
और एक जाम
खत्म न हो जश्ने-रौनक हँसीन शाम की। आ टकरा लें प्याला और एक जाम की। देखो साकी खाली ना होने पाए पैमाना, ले आओ सारी…
” मौत करती है रोज़ “
मौत करती है नए रोज़ बहाने कितने ए – अप्सरा ये देख यहाँ तेरे दीवाने कितने मुलाक़ात का इक भी पल नसीब ना हुआ…
“लगता है भूल गये हो”
यूँ गयें हो दूर हम से जैसे कुछ था ही नहीं, लगता है पुरानी सोहबतों को भी तुम भूल गये हो, इतना भी आसान…
Bahut ache
thanks
nice 🙂
thanks
absolutely….:)
thanks
वाह
सर टकरा कर, ना जाने कितने खाक हो गये
वाह वाह