देर नहीं लगती

देर नहीं लगती

कोई क्यों इतना एहसान फरमा रहा,
कुछ तो है जो संग आ रहा
खाली जेब को,
कभी किसी की नजर नहीं लगती ,
रिश्ते कब मतलबी हो जाए ,
देर नहीं लगती।

ऐसे ही छोड़ जाएगी,
मिनटों में दिल तोड़ जाएगी,
इतनी भी वह मुझको फरेबी,
खैर नहीं लगती।
पर बहुत जुड़ते- टूटते रिश्ते; आजकल!
बात कब बिगड़ जाए,
देर नहीं लगती।

संगदिल है सब,
हमदर्द हैं सब ,
तेरे सुख के हर पलों में,
पर यह क्या हुआ ?
दुख में तू अकेला !
टूटा सा कोई जैसे ठेला!
वक्त की कड़वी गोली ,
सबक से कम नहीं लगती
कब ?कौन ?कहां?
हाथ छोड़ दे,
देर नहीं लगती।

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