देवी नहीं बस इन्सान
एक ऐसा जहाँ, देवी नहीं बस इंसान समझा जाता हो
देवी का दर्जा देके न छल, नारी से किया जाता हो।
आसमां पे बिठा के अस्तित्व पर भी बन आया है
बाहर तो क्या घर में भी सम्मान कहाँ पाया है
जिसकी वह अधिकारिणी वह भी छिनता आया है
खुद पर खुद की इच्छाओं पर मलाल जिसे आया है
वह नारी है जिसकी सोच पर पाबंदी लगा आया है
नभ नहीं बस वह जमी मिले,जहाँ मान रखा जाता हो
जहाँ देवी नहीं बस इंसान समझा जाता हो ।
कन्या पूजन के लिए, जिसे घर-घर में ढूँढ़ा जाता है
जमी पे आने से पहले ही, जिसका कत्ल किया जाता है
दुर्गा, काली, कभी अन्नपूर्णा समझ जिसे पूजा जाता है लक्ष्मी को घर में ही, दहेज की वेदी पे चढाया जाता है
सारे रिश्ते तो क्या, इन्सानियत को भी भूलाया जाता है
पत्थर की मूरत नहीं, अर्धांगनी का मान रखा जाता हो
जहाँ देवी नहीं बस इंसान समझा जाता हो ।
वाह वाह, बहुत ही सुन्दर और यथार्थ पर आधारित रचना,
सादर धन्यवाद
Sunder
सादर आभार
बहुत सुंदर
सुमन जी । कविता में बहुत ही सुन्दर भाव है।
बहुत बहुत धन्यवाद
बहुत सुंदर
बहुत ही सुन्दर और यथार्थ पर आधारित रचना,