दोहा : नवसंवत
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नव संवत है विक्रमी, अतिपावन मधुमास।
राक्षस नाम धराया, पर आनन्द की आस।। १।।
नव किसलय तरुवर सजा, चहुदिश नव उल्लास।
जनम मास है राम की, नौराता भी खास।। २।।
घर घर रामायण पाठ,अरु चंडी का जाप।
मंगल ध्वनि गुञ्जित सदा, मिटे जगत संताप।। ३।।
कनक कलश हो कनक भरा,पूरण घर भंडार।
विनयचंद तू मगन हो, पूजो निज त्योहार।। ४।।
अपना पराया ना करो,राखो हृदय उदार।
आदर कर सब धर्म का, भूल न निज व्यवहार ।।५।।
पं विनय शास्त्री ‘ विनयचंद ‘
बस्सी पठाना (पंजाब)
मो. 8437335178
वाह, अति सुन्दर, अति उत्तम रचना।
धन्यवाद पाण्डेयजी
नव किसलय तरुवर सजा, चहुदिश नव उल्लास।
जनम मास है राम की, नौराता भी खास।।
_______ हिंदू नव वर्ष और नवरात्रि के अवसर पर कवि विनय चंद शास्त्री जी की अति सुंदर रचना, उम्दा लेखन
शुक्रिया बहिन
बहुत ही सुंदर पंक्तियां हिंदू नव वर्ष पर आधारित कविता
अपना पराया ना करो,राखो हृदय उदार।
आदर कर सब धर्म का, भूल न निज व्यवहार ।।५।।
अति सुंदर अभिव्यक्ति