Categories: मुक्तक
Related Articles
दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34
जो तुम चिर प्रतीक्षित सहचर मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष तुम्हे होगा निश्चय ही प्रियकर बात बताता हूँ। तुमसे पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…
दोस्ती से ज्यादा
hello friends, कहने को तो प्रतिलिपि पर ये दूसरी कहानी है मेरी लेकिन सही मायनो मे ये मेरी पहली कहानी है क्योकि ये मेरे दिल…
शायरी संग्रह भाग 2 ।।
हमने वहीं लिखा, जो हमने देखा, समझा, जाना, हमपे बीता ।। शायर विकास कुमार 1. खामोश थे, खामोश हैं और खामोश ही रहेंगे तेरी जहां…
व्यंग्य —- पूंछ पुराण
व्यंग्य …………………………………… ****** पूंछ— पुराण (समग्र)****** कभी देखा है ;आपने , ऐसा कुत्ता ! जो ; देखने में हो छोटा–सा मगर;पूंछ उसकी लंबी हो यानि…
मैं बस्तर हूँ
दुनियाँ का कोई कानून चलता नहीं। रौशनी का दिया कोई जलता नहीं। कोशिशें अमन की दफन हो गयी हर मुद्दे पे बंदूक चलन हो गयी॥…
वाह
सादर धन्यवाद भाई जी 🙏
सुन्दर प्रस्तुति
बहुत बहुत धन्यवाद प्रतिमा जी
बहुत ही बेहतरीन पंक्तियाँ, वाह वाह,
“आहट से जान लेते हैं ,
ख़ुशबू से पहचान लेते हैं ।”
जितनी तारीफ की जाय वह कम है।
सुंदर समीक्षा के लिए आपका बहुत धन्यवाद सतीश जी।🙏
सुन्दर
Thank you suman ji
ओहो, कॉमन सेंस
Thanks for your pricious complement pragya…🙂
Pricious comment kar hi pati hoon
Haan pragya,bilkul kar pati ho
Very very nice
Thank you very much for your nice complement chandra ji🙏
Wow geeta, very nice poem 👏
बहुत खूब
धन्यवाद पीयूष जी 🙏
Waah Waah
Thank you sir
बहुत खूब
शुक्रिया कमला जी🙏