नदी और नाला।

जहां गंगा पवित्र है ,
वही पवित्र तो नाला भी होता था कभी,
अगर गंगा पाप धोती है !
तो नाला पापों को समेटता है अपने में।
पर नाले को कौन पूजेगा,
पर कभी नाला भी नदी हुआ करता था ,
वही स्वच्छ जल और और वही पवित्रता
पर जैसे ही नदी सूखी ,हमने बना दिया
उसे नाला !
और अब नाला; नाला है और नदी , नदी है।

Related Articles

दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34

जो तुम चिर प्रतीक्षित  सहचर  मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष  तुम्हे  होगा  निश्चय  ही प्रियकर  बात बताता हूँ। तुमसे  पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…

प्यार अंधा होता है (Love Is Blind) सत्य पर आधारित Full Story

वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥ Anu Mehta’s Dairy About me परिचय (Introduction) नमस्‍कार दोस्‍तो, मेरा नाम अनु मेहता है। मैं…

Responses

  1. क्या तंज कसा है आपने बिल्कुल सही कहा है आपने यह सब हमारे ही कर्मों का फल है की नदी नाले का स्वरूप ले रही है आपने व्यंग का प्रयोग करते हुए सुंदर रचना प्रस्तुत की है स्वच्छ जल और स्वच्छ मन क्या बात है

  2. बहुत बहुत धन्यवाद !अभिषेक सर! कविता में दो तरह के भाव निकलते हैं, एक तो आप ने बता दिया है मगर दूसरे अर्थ को भी खुद न बताते हुए , आप लोगों से ही जानना चाहूंगा बस इतना बताना चाहूंगा कि मैंने प्रतिकात्मक एवं व्यग्यांत्मक शैली का प्रयोग किया है।

    1. दूसरा अर्थ यह है कि अब नदी नदी हुआ करती है और नाला नाला।
      इन सब के जिम्मेदार और कोई नहीं हम सब लोग हैं

      1. कविता में गंगा उच्च जाति(ब्राह्मण) का प्रतिक रूप है
        और नाला शूद्र (साफ सफाई करने वाले) का ।
        जबसे कर्मों का बंटवारा जातिगत आधार पर हुआ है तब से ब्राह्मण ;ब्राह्मण है ,शुद्र; शुद्र है

    2. यह तो आपने बहुत ही सुंदर बात की मेरे हिसाब से जाति और धर्म होना ही नहीं चाहिए इससे हमें भी बहुत पीड़ा होती है सभी का रंग और लहू एक ही है और सबका धर्म एक ही होना चाहिए मानवता।

      1. बिल्कुल सर! विचारों का सम्मान करने के लिए तहदिल से अभिनंदन

+

New Report

Close