पांच बेटे मां को खिला न सके
एक मां ने पांच बेटों को पाला
पांच बेटे मां को खिला न सके
कितनी बदकिस्मत होगी वो मां
जिसपे मिटी साथ निभा न सके
बेटे के लिए कितने चक्कर लगाये
मंदिर में निशदिन प्रसाद चढ़ाया
मस्जिद तक में भी चादर बांटे
बुढ़ापे का जहर किस सहारे काटे
बेटे होते हैं निरंकुश ही अगर ऐसे
कंस रावण को पास रखें भी कैसे
इनको अब पराया करना ही ठीक
बेटियों को अपनाना है चाहे जैसे
अपनों के न हुए दूसरों के क्या होंगे
इन अजूबों से संग्रहालय भी न सजेंगे
इनके बच्चे भी तो होंगे इनके ही वैसे
बेटी इन को वरण करेगी भी तो कैसे
भावपूर्ण पंक्तियां
बहुत खूब
बहुत ही सुन्दर भाव है।
बहुत ही सच्ची अभिव्यक्ति। जो संसार मे घटित हो रहा उसे अभिव्यक्त करने में आपकी लेखनी पूर्णतः सफल रही है।
sabhi kavita pipasuo ko hardik dhanyavad