पिता बरगद का वृक्ष
शीर्षक:- पिता:-बरगद का वृक्ष
पिता वह बरगद का वृक्ष है
जिसकी छांव में हमें
प्रेम, स्नेह तथा सुरक्षा मिलती है..
पिता नारियल का वह
फल है
जो ऊपर से सख्त
परन्तु अन्दर से
सुकोमल होता है…
माँ तो आँसू बहाकर
दुःख प्रकट कर लेती है,
परन्तु पिता
निर्मोही होने का ढोंग करता रहता है
जबकि अन्दर-अन्दर
रोता रहता है…
जब वह डाटता है तो
उसकी डाट में
फिक्र छुपी होती है
अपने बच्चे की…
वट है वह सब खुद
ही सह लेता है…
अपनी उदार लताओं
से हर कदम
सहारा देता है…
कंधे पर बिठाकर
दुनिया दिखाता है..
उँगली पकड़ कर चलना
सिखाता है..
तुम पर आए कोई आँच
तो सुरक्षा करता है
डाटता इसलिए है
क्योंकि प्रेम करता है…
पुरुष है इसलिए कह
नहीं पाता…
माँ की तरह मुख चूम
नहीं पाता…
माँ की तरह तुलसी का
पौधा नहीं है वह
बरगद है वह इसलिए
झुक नहीं पाता..
Sunder
बहुत खूब
पिता के प्रेम और अनुशासन को दर्शाती हुई बहुत शानदार प्रस्तुति
बहुत ही उम्दा रचना