प्यार है या जख्म
कविता- प्यार है या जख्म
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क्या कसूर था मेरा,
बस आके एक बार बता जा|
खुश है-
आ उन्नीस बरस का प्यार बता जा|
करले तुलना प्यार से अपने,
अब पूछो जरा मन सम्मान से अपने|
पाके हसले निस दिन सपने,
आ देख दशा, सपने डरते निस दिन अपने|
हालात ने मोड़ा नहीं,
हालात को तू ने मोड़ दिया मोड़ दिया |
मिली खुशी तुम्हें ,सोच जरा,
मां बाप को किस हाल में छोड़ दिया|
तोड़ खुशी को खुशी है पाई,
जा खुशी तेरी आबाद रहे|
जा खुश रहना, खुशी में अपने,
हर जन तेरी खुशियों का सम्मान करें|
मुंह के गूंगे कान के बहरे,
अंधे लूले कोढ़ी पूछ रहे|
जिनके मुख पर कालिख थी,
हंसी छुपा के दुख बांट रहे|
कोई संस्कार बताएं,
कोई दोष दिखाएं|
हम देख रहे हैं बेटी,
कोई गाली तुझे दे जाए |
गोदी में तुझे रख कर के
दूध पिलाया आंचल में छिपा कर के|
हमें तो तूने जहर पिलाया,
सब जन को दिखा करके कर के|
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ऋषि कुमार प्रभाकर
अलंकार तथा रस से परिपूर्ण रचना बहुत प्यारी कविता
Tq
बेटी के अनायास ही घर छोड़ जाने पर दुखी माता पिता की करुण व्यथा को बहुत सुंदर शब्दों में उतारा है। ….हृदय स्पर्शी रचना..
Tq🙏
बहुत सुंदर
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सुंदर
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Very nice
Tq
बहुत सुन्दर, सुन्दर भाव और शिल्प, निरंतर लिखते रहिये। सुन्दर सोच है आपकी, उचित दिशा है। keep it up
Tq🙏🙏
बिना कुछ सोचे समझे और बिन बताए ,अंध प्रेम में पड़कर जो बच्चे घर छोड़ कर चले जाते हैं उनके विषय में बहुत सुंदर रचना
ऋषि सर आप बहुत अच्छा लिखते हो👌👏👏
देखिए त्रुटियां तो सबसे होती है,
मगर एक छोटी सा निवेदन मेरी तरफ से कृपया पोस्ट करने से पहले एक-दो बार कविता को पढ़ लिया करो जिससे त्रुटियों का आंकलन हो जाए।
मैं भी ऐसा ही करता हूं! धन्यवाद ।ऐसे ही सुंदर -सुंदर लिखते रहिएगा 🙏
Tq